चेतन मन, अवचेतन मन : बचकानी कल्पना
आधुनिक विद्वानों का भी कोई जबाब नहीं है। अभी तक ‘मन’ की कोई परिभाषा किसी
आधुनिक विद्वानों का भी कोई जबाब नहीं है। अभी तक ‘मन’ की कोई परिभाषा किसी
‘नींद’ में ‘आत्मा’ पॉवर सर्किट में बनी रहती है। वह केवल अपने एक बिंदु को
आधुनिक युग में पति-पत्नी के बीच कलह, तनाव, उपेक्षा, अवैध सम्बन्ध की समस्याएं हर जगह
उसका ‘मैं’ । मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही जितने भी विनाश हुए है, इनके
भ्रम में आप पड़े हुए है , इसपर हम धर्मालय के वेबसाइट के “धर्म का
तरीका तो मैं बार बार बता रहा हूँ । परन्तु शायद मुझसे ही कोई गलती
मैंने वेद नहीं पढ़ा , ऐसा नहीं है। और यह केवल वैदिक ज्ञान है ,ऐसा
अच्छा प्रश्न है । इसने सभी आस्तिकों को भी संदेह में डाल रखा है। संसार
‘परमात्मा’ शब्द स्वयं ही अपना अर्थ बता रहा है । ‘आत्मा’ का अर्थ सार होता
यह डमरू बनने की प्रक्रिया में है। किसी नयी इकाई का उदय हो रहा है